कडकनाथ मुर्गी को भी फेल कर देती है इस नस्ल की मुर्गी, हजारो रूपये कीमत है दर्जन भर अंडो की

कडकनाथ मुर्गी को भी फेल कर देती है इस नस्ल की मुर्गी, हजारो रूपये कीमत है दर्जन भर अंडो की

कडकनाथ मुर्गी को भी फेल कर देती है इस नस्ल की मुर्गी, हजारो रूपये कीमत है दर्जन भर अंडो की। अंडो की कीमत भी 1200 रुपये दर्जन भारत में मुर्गी पालन का व्यवसाय बड़े पैमाने में किया जा रहा है. ऐसे में लोग मुर्गी पालन के जरिए एक अच्छी आय अर्जित कर रहे हैं. भारत में अंडे की मांग भी काफी अधिक है, लोग शरीर में प्रोटीन की मात्रा को बढ़ाने के लिए अंडों का सेवन करते हैं. ऐसे में सरकार भी पोल्ट्री फार्मिंग के व्यवसाय को बढ़ावा दे रही है, इसके लिए कई सब्सिडी योजनाएं चलाई जा रही हैं. इसी कड़ी में आज हम एक ऐसे मुर्गी की नस्ल की जानकारी देने जा रहे हैं, जिसके आगे कड़कनाथ मुर्गा भी फेल है.

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इस नस्ल की मुर्गी कड़कनाथ मुर्गी को भी देती है मात देती

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इस नस्ल की मुर्गी कड़कनाथ मुर्गी को भी देती है मात देती है इस नस्ल की मुर्गी असील नस्ल की मुर्गियों का पालन मांस उत्पादन के लिए किया जाता है. हालांकि असील नस्ल की मुर्गियों की अंडा देने की क्षमता उत्तम नहीं होती है, यह साल में केवल 60 से 70 अंडे ही देती है. जिस कारण से इसके अंडे की कीमत भी काफी अधिक होती है. बाजार में एक अंडे की कीमत 100 रुपए है. साथ ही इसके मीट की कीमत भी काफी अधिक है. इसके अलावा इस मुर्गी के अंडे के सेवन से आंखों को काफी लाभ पहुंचता है.

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इस नस्ल की मुर्गियों से होगी तगड़ी कमाई

इस नस्ल की मुर्गियों से होगी तगड़ी कमाई असील मुर्गियों से साल भर होगा मोटा मुनाफा असील मुर्गियां अन्य मुर्गियों की तुलना में काफी अलग हैं, जिस कारण से इन्हें पॉल्ट्री फॉर्म की बजाय बैकयार्ड फार्म में पाला जाता है. भले ही असील मुर्गियां अंडा उत्पादन के मामले में पीछे हों, मगर सालभर में अन्य मुर्गियों तुलना में इनसे अधिक कमाई हो जाती है.

लड़ाकू प्रवर्ती के होते है ये असील मुर्गा

लड़ाकू प्रवर्ती के होते है ये असील मुर्गाआइये जानते है की असील मुर्गे लड़ाकू प्रवति के होते है और भी जानकारी आपको आगे बताते है मुर्गी की ये नस्ल कड़कनाथ को भी पीछे छोड़ देती है, अंडो की कीमत भी 1200 रुपये दर्जन असील मुर्गे लड़ाकू प्रवर्ती के होते हैं, यह कोई नई किस्म नहीं है और ना ही इसे विकसित किया गया है, बल्कि यह मुगलों के शासन से चले आ रहे हैं. आपने फिल्मों में या कहानियों में सुना ही होगा कि पुराने समय में नवाब बड़े-बड़े मुर्गों को लड़ाने का शौक रखा करते थे, जिसके लिए वह रंग बिरंगे मुर्गे असील मुर्गे ही पाला करते थे. मुर्गे लड़ाने के परंपरा अभी भी कई जगहों पर देखी जा सकती है. बता दें कि असील मुर्गों की भी कई किस्में मौजूद हैं, जिसमें यारकिन, कागरनूरिया 89, टीकर, रेजा, चित्ताद, कागर आदि शामिल हैं

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